वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
अभी खिड़की में इक जलता दिया है
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पत्ते का ग़म
पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ
मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
न हाथ बाग पर है न पा है रिकाब में
ना-कर्दा गुनाह
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना
मैं
लिबास
चाँद तारे बना के काग़ज़ पर