बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
आज बुत-ख़ाना में अल्लाह की क़ुदरत होगी
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शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है
जा लड़ी यार से हमारी आँख
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
हम न कहते थे कि सौदा ज़ुल्फ़ का अच्छा नहीं
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र