मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
दर-ए-मय-ख़ाना पे बिछता है मुसल्ला अपना
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देखिए पार हो किस तरह से बेड़ा अपना
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
दिल में तिरे ऐ निगार क्या है
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो