रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
हराम-ज़ादा था अच्छा हुआ हलाल हुआ
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निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लक
हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
जा लड़ी यार से हमारी आँख
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया