ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

कितनी हक़ीक़तों को बदलते रहे हैं हम

अपने ग़ुबार में भी है वो ज़ौक़-ए-सर-कशी

पामाल हौके अर्श पे चलते रहे हैं हम

सौ सौ तरह से तुझ को सँवारा है हुस्न-ए-दोस्त

सौ सौ तरह से रंग बदलते रहे हैं हम

हर दश्त-ओ-दर में फूल खिलाने के वास्ते

अक्सर तो नोक-ए-ख़ार पे चलते रहे हैं हम

आईन-ए-पासदारी-ए-सहरा न छुट सका

वज़-ए-जुनूँ अगरचे बदलते रहे हैं हम

साक़ी न मुल्तफ़ित हो तो पीना हराम है

प्यासे भी मय-कदे से निकलते रहे हैं हम

कोई ख़लील जिस को न गुलज़ार कर सका

तेरे लिए इस आग पे चलते रहे हैं हम

क्या जाने कब वो सुब्ह-ए-बहाराँ हो जल्वा-गर

दौर-ए-ख़िज़ाँ में जिस से बहलते रहे हैं हम

पुर्सान-ए-हाल कब हुई वो चश्म-ए-बे-नियाज़

जब भी गिरे हैं ख़ुद ही सँभलते रहे हैं हम

साहिल की इशरतों को ख़बर भी न हो सकी

तूफ़ान बन के लाख मचलते रहे हैं हम

तख़्ईल-ए-लाला-कार ये कहती है ऐ 'सुरूर'

कोई ज़मीं हो फूलते-फलते रहे हैं हम

(1547) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum In Hindi By Famous Poet Aal-e-Ahmad Suroor. KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum is written by Aal-e-Ahmad Suroor. Complete Poem KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum in Hindi by Aal-e-Ahmad Suroor. Download free KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum Poem for Youth in PDF. KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum is a Poem on Inspiration for young students. Share KHwabon Se Yun To Roz Bahalte Rahe Hain Hum with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.