जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
उस की क़िस्मत में रही दर-बदरी कहते हैं
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर
मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
लोग तन्हाई का किस दर्जा गिला करते हैं
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे