मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
हाथ में अपने अगर जाम लिया है तुम ने
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वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
एक दीवाने को इतना ही शरफ़ क्या कम है
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा