ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ
मेरा चाहना देख क्या चाहता हूँ
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बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
मिलने वाले से राह पैदा कर
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
रविश उस चाल में तलवार की है
फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर