जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
आरज़ूओं के घरौंदे ढह गए
मैं तो चालीस का हूँ और पचपन की वो
''दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गए''
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दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
ऐ शैख़ कंघा करना नहीं ज़ेब देता यूँ
मेरी बीवी ने बना रक्खी है फुटबॉल की टीम
जो आप पर फ़िदा हैं वो मेरे रक़ीब हैं
सिलसिले ऊँचे ख़यालात से जोड़े हम ने
वो हाल है हर एक बशर काँप रहा है
ये कहते हैं सभी इस दौर में हर काम मुमकिन है
रेट इतने बढ़े हैं जूतों के
मर जाए मौलवी तो फ़क़त होगी फ़ातिहा
मौत से मिलने गले देख तो आशिक़ तेरे
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है