बोलता हूँ तो मिरे होंट झुलस जाते हैं
उस को ये बात बताने में बड़ी देर लगी
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वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो
मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था
चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया
मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था
अगर यूँही मुझे रक्खा गया अकेले में
पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था
एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
झोंके के साथ छत गई दस्तक के साथ दर गया
तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप
हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता
रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ