बयाज़ पर सँभल सके न तजरबे
फिसल पड़े बयान बन के रह गए
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Gulzar
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नज़र आसूदा-काम-ए-रौशनी है
ख़िरद की रह जो चला मैं तो दिल ने मुझ से कहा
सवाल का जवाब था जवाब के सवाल में
नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म
फ़साद के ब'अद
ईद उस परी-वश की
अज़दवाजी ज़िंदगी भी और तिजारत भी अदब भी
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई
जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है
बजा कि लुत्फ़ है दुनिया में शोर करने का
सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा