अब्दुल रहमान एहसान देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
नामअब्दुल रहमान एहसान देहलवी
अंग्रेज़ी नामAbdul Rahman Ehsan Dehlvi

सूफ़ी हूँ न वाइज़ हूँ नहीं हूँ मुल्ला

हैं एक हकीम जी ब-शक्ल-ए-ताऊन

एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े

यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो

याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे

वो आग लगी पान चबाए से कसू की

उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता

उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है

तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार

तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम

तनख़्वाह एक बोसा है तिस पर ये हुज्जतें

शब पिए वो सराब निकला है

पलकों से गिरे है अश्क टप टप

नसीब उस के शराब-ए-बहिश्त होवे मुदाम

नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुई

न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला

मोहतसिब भी पी के मय लोटे है मयख़ाने में आज

मिरी बात-चीत उस से 'एहसाँ' कहाँ है

मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल

मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं

क्यूँकर न मय पियूँ मैं क़ुरआँ को देख ज़ाहिद

क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल को

क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरा

कुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी है ख़ुदा की वास्ते

किस को उस का ग़म हो जिस दम ग़म से वो ज़ारी करे

ख़ाक आब-ए-गिर्या से आतिश बुझे नाचार हम

कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है

जो पूछा मैं ने दिल ज़ुल्फ़ों में जूड़े में कहाँ बाँधा

जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा

इतवार को आना तिरा मालूम कि इक उम्र

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