ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
ख़ूब लगती है गुनह के ब'अद इस्तिग़फ़ार सी
यार की अँखियों सेती जब सीं लगा है मेरा दिल
तब्अ मेरी तब सेती रहती है कुछ बीमार सी
हुस्न की चढ़ती कभी हो है कभी बढ़ती कला
चाँद की होती नहीं गिनती में दिन हर बार सी
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