कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैं
नशेब-ए-ख़ाक में जा कर मुझे ख़याल आया
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
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क्या आग सब से अच्छी ख़रीदार है
फ़ैसला
हमें भूल जाना चाहिए
इक शाम ये सफ़्फ़ाक ओ बद-अंदेश जला दे
अगर उन्हें मालूम हो जाए
मैं डरता हूँ
आख़िरी दलील
एक लड़की
दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
वो अपने आँसू एक नाज़ुक हेयर ड्रायर से सुखाती है
एक तलवार की दास्तान