परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
शजर पे लिक्खा हुआ है शजर बराए-फ़रोख़्त
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तभी तो मैं मोहब्बत का हवालाती नहीं होता
आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
राह भोला हूँ मगर ये मिरी ख़ामी तो नहीं
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता