अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ
कितना पड़ेगा और अभी जागना मुझे
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ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी रख दी ऐसी
इब्न-ए-आदम बरसर पैकार है
था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया
न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है
मैं सोज़-ए-दरूँ अपना दिखा भी नहीं सकता
सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आज
चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम
रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
वो हस्ब-ए-वादा न आया तो आँख भर आई
रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द
इस हाल में कब तक यूँही घुट घुट के जियूँगा