ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी रख दी ऐसी
न मुझे चैन न आराम है क्या अर्ज़ करूँ
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मैं सोज़-ए-दरूँ अपना दिखा भी नहीं सकता
था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया
उर्दू की शोहरा-ए-आफ़ाक़ वेब-साइट रेख़्ता की इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात पर मंज़ूम तअस्सुरात
वो हस्ब-ए-वादा न आया तो आँख भर आई
जब से में ने देखा है एक ख़ुशनुमा चेहरा
चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम
तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मुझ को बनाने वाला
हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स
कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ
इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है
न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है
सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आज