Bewafa Poetry of Ahmad Faraz

Bewafa Poetry of Ahmad Faraz
नामअहमद फ़राज़
अंग्रेज़ी नामAhmad Faraz
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2008

वो सामने हैं मगर तिश्नगी नहीं जाती

सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से

किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ 'फ़राज़' कब तक

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का

तो बेहतर है यही

मुहासरा

काली दीवार

दोस्ती का हाथ

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं

ये आलम शौक़ का देखा न जाए

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही

तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे

न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे

न दिल से आह न लब से सदा निकलती है

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

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