हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
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ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
हम को उस शहर में तामीर का सौदा है जहाँ
जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना
मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
भली सी एक शक्ल थी
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
साक़ी ये ख़मोशी भी तो कुछ ग़ौर-तलब है
ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी