मैं रात टूट के रोया तो चैन से सोया
कि दिल का ज़हर मिरी चश्म-ए-तर से निकला था
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ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो
इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
'फ़राज़' तेरे जुनूँ का ख़याल है वर्ना
जब भी दिल खोल के रोए होंगे
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा