क़ासिदा हम फ़क़ीर लोगों का
इक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
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Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ
किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ 'फ़राज़' कब तक
क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे
सब क़रीने उसी दिलदार के रख देते हैं
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना
मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
ये अब जो आग बना शहर शहर फैला है
ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं