क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

रोज़ा न टूट जाए किसी रोज़ा-दार का

उन का वो शोख़ियों से फड़कना पलंग पर

वो छातियों पे लोटना फूलों के हार का

हूर आए ख़ुल्द से तो बिठाऊँ कहाँ उसे

आरास्ता हो एक तो कोना मज़ार का

शीशों ने तर्ज़ उड़ाई रुकू ओ क़याम की

क्या इन में है लहू किसी परहेज़-गार का

क्यूँ ग़श हुए कलीम तजल्ली-ए-तूर पर

वो इक चराग़ था मिरे दल के मज़ार का

बअ'द-ए-फ़ना भी साफ़ नहीं दिल रक़ीब से

गुम्बद खड़ा हुआ है लहद पर ग़ुबार का

कसरत का रंग शाहिद-ए-वहदत का है बनाव

वो एक ही से नाम है हज़दा हज़ार का

नाक़ूस बिन के पूछने जाऊँ अगर मिज़ाज

बुत भी कहेंगे शुक्र है पर्वरदिगार का

दूल्हा की ये बरात है रस्में अदा करो

दर पर जनाज़ा आया है इक जाँ-निसार का

क्या क्या तड़प तड़प के सराफ़ील गिर पड़े

दम आ गया जो सूर में मुझ बे-क़रार का

सुर्मा के साथ फैल के क्या वो भी मिट गया

क्यूँ नाम तक नहीं तिरी आँखों में प्यार का

क्या रात से किसी की नज़र लग गई इसे

अच्छा नहीं मिज़ाज दिल-ए-बे-क़रार का

आँखें मिरी फ़क़ीर हुईं शौक़-ए-दीद में

तस्मा कमर में है निगह-ए-इंतिज़ार का

लूटूँ मज़े जो बाज़ी-ए-शतरंज जीत लूँ

इस खेल में तो वा'दा है बोस-ए-कनार का

अल्लाह मिरा ग़फ़ूर मोहम्मद मिरे शफ़ीअ'

'माइल' को ख़ौफ़ कुछ नहीं रोज़-ए-शुमार का

(1016) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka In Hindi By Famous Poet Ahmad Husain Mail. Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka is written by Ahmad Husain Mail. Complete Poem Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka in Hindi by Ahmad Husain Mail. Download free Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka Poem for Youth in PDF. Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Kyun Shauq BaDh Gaya Ramazan Mein Singar Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.