मैं क़सीदा तिरा लिक्खूँ तो कोई बात नहीं
पर कोई दूसरा दोहराए तो शक करता हूँ
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वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
ख़ुदाया यूँ भी हो कि उस के हाथों क़त्ल हो जाऊँ
रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
तुम मेरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
रफ़ाक़तों का तवाज़ुन अगर बिगड़ जाए
जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
तुम्हारे वस्ल का जिस दिन कोई इम्कान होता है