मिरी वफ़ा है मिरे मुँह पे हाथ रक्खे हुए
तू सोचता है कि कुछ भी नहीं समझता मैं
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तेरे हिस्से के भी सदमात उठा लेता हूँ
इक पल का तवक़्क़ुफ़ भी गिराँ-बार है तुझ पर
चराग़ ताक़-ए-तिलिस्मात में दिखाई दिया
पाँव बाँधे हैं वफ़ा से जब ने
मिट्टी से बग़ावत न बग़ावत से गुरेज़ाँ
कुर्रा-ए-हिज्र से होना है नुमूदार मुझे
दाना-ए-गंदुम-ए-बेदार उठाने लगा हूँ
ख़्वाब यूँ ही नहीं होते पूरे
रास आएगी मोहब्बत उस को
मुझ पे तस्वीर लगा दी गई है
ये जो बेदार दिखाई दिया हूँ