अहमद ख़याल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद ख़याल

अहमद ख़याल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद ख़याल
नामअहमद ख़याल
अंग्रेज़ी नामAhmad Khayal
जन्म की तारीख1979

ये भी तिरी शिकस्त नहीं है तो और क्या

ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी

वो ज़हर है फ़ज़ाओं में कि आदमी की बात क्या

वो सर उठाए यहाँ से पलट गया 'अहमद'

वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'

तुम्हारी जीत में पिन्हाँ है मेरी जीत कहीं

तू जो ये जान हथेली पे लिए फिरता है

सुकूत तोड़ने का एहतिमाम करना चाहिए

मेरे कश्कोल में डाल और ज़रा इज्ज़ कि मैं

मैं था सदियों के सफ़र में 'अहमद'

महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक

कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर

कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें

किसी दरवेश के हुजरे से अभी आया हूँ

हवा के हाथ पे छाले हैं आज तक मौजूद

दिल किसी बज़्म में जाते ही मचलता है 'ख़याल'

दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया

बस चंद लम्हे पेश-तर वो पाँव धो के पल्टा है

ऐन मुमकिन है कि बीनाई मुझे धोका दे

ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे

ये तअल्लुक़ तिरी पहचान बना सकता था

उसे इक अजनबी खिड़की से झाँका

उन को में कर्बला के महीने में लाऊँगा

सुकूत तोड़ने का एहतिमाम करना चाहिए

शहर-ए-सदमात से आगे नहीं जाने वाला

क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे

मिरे अंदर रवानी ख़त्म होती जा रही है

मैं वहशत-ओ-जुनूँ में तमाशा नहीं बना

कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें

कोई अन-देखी फ़ज़ा तस्वीर करना चाहिए

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