आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
लड़कियाँ गागरें भरती हुई घबरा सी गईं
ओढ़नी सर पे जमा कर वो सुबूही उट्ठी
अँखड़ियाँ चार हुईं झुक गईं शर्मा सी गईं
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क़रिया-ए-मोहब्बत
दावा तो किया हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ का सब ने
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
मुझे तलाश करो
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
पत्थर
सारी दुनिया हमें पहचानती है
ये फ़ज़ा, ये घाटियाँ, ये बदलियाँ ये बूंदियाँ
रूह लबों तक आ कर सोचे
इक उम्र के ब'अद मुस्कुरा कर
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ