जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते
कहें न आईना उस को जो पारा-पारा नहीं
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कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'ज़फ़र'
जब तक जुनूँ जुनूँ है ग़म-ए-आगही भी है
तन्हाई ने पर फैलाए रात ने अपनी ज़ुल्फ़ें
इक तसव्वुर तो है तस्वीर नहीं
जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है
अंग अंग से रंग रंग के फूल बरसते देखे कौन
हैरत-ख़ाना-ए-इमरोज़
पाताल ज़मीन आसमान
आप कहें तो गुलशन है
वो फूल जो मुस्कुरा रहा है
क्या पता किस जुर्म की किस को सज़ा देता हूँ मैं