तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं
किसी से इतनी मगर क़ुर्बतें भी ठीक नहीं
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
आने वाली थी ख़िज़ाँ मैदान ख़ाली कर दिया
ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
फ़त्ह का ग़म
कष्ट
ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं
तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है
कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी