भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
बस ख़ुदा समझा है उस ने बर्क़ को और भाप को
बर्क़ गिर जाएगी इक दिन और उड़ जाएगी भाप
देखना 'अकबर' बचाए रखना अपने आप को
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बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
बूट दासन ने बनाया मैं ने इक मज़मून लिखा
हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
जिस तरफ़ उठ गई हैं आहें हैं
आह जो दिल से निकाली जाएगी