अकबर हैदराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर हैदराबादी

अकबर हैदराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अकबर हैदराबादी
नामअकबर हैदराबादी
अंग्रेज़ी नामAkbar Hyderabadi
जन्म की तारीख1925

शो'ले हैं कहीं तेज़ कहीं हैं मद्धम

सर बस्ता हयात ज़ात गुंजान मिरी

क़ब्र-ए-दर-ओ-दीवार से आगे निकले

नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने

मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में

मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं

किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी

कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है

हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है

दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी

बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो

यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी

वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास

रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला

रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार

पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से

न जाने कितनी बस्तियाँ उजड़ के रह गईं

मुश्किल ही से कर लेती है दुनिया उसे क़ुबूल

मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला

मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में

मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब

लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश

ख़ुद-परस्ती ख़ुदा न बन जाए

हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को

हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है

दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से

छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी

चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही

बुरे भले में फ़र्क़ है ये जानते हैं सब मगर

बे-साल-ओ-सिन ज़मानों में फैले हुए हैं हम

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