मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
कि मेरी फ़िक्र का हर फ़ैसला शुऊरी था
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मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला
रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है
लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे
हिसार-अंदर-हिसार