मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं
बस में मिरे इस दर्द का चारा भी नहीं
दुनिया की रविश से ख़ुश नहीं हूँ लेकिन
दुनिया को बदल देने का यारा भी नहीं
Allama Iqbal
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बुरे भले में फ़र्क़ है ये जानते हैं सब मगर
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश
पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से
घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला
हिसार-अंदर-हिसार
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
क़ब्र-ए-दर-ओ-दीवार से आगे निकले
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है