नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
जल उट्ठी ज़मीं आग लगाई किस ने
उठती हैं जहाँ की उँगलियाँ किस की तरफ़
याँ जीत के हारी है लड़ाई किस ने
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बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से
हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
सच्चा दिया
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं
मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
न जाने कितनी बस्तियाँ उजड़ के रह गईं