सर बस्ता हयात ज़ात गुंजान मिरी
दरयाफ़्त नहीं इस क़दर आसान मिरी
हाले से बने हुए हैं मेरे अतराफ़
ख़ुद मेरा मुक़द्दर नहीं पहचान मिरी
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चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
अजल सराए तीरगी
ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
वारिस
लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश
यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी
घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था