आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
जैसे अल्फ़ाज़ में होते हैं मआ'नी पिन्हाँ
नग़्मा-गर! यूँही तिरे दर्द-भरे नग़्मों में
है मिरे दर्द-ए-मोहब्बत की कहानी पिन्हाँ
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लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
इस में कोई मिरा शरीक नहीं
आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है