ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू
ख़ुशी का लम्हा कोई याद आ गया होगा
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याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है
ये बस्ती इस क़दर सुनसान कब थी
लब-ए-सुकूत पे इक हर्फ़-ए-बे-नवा भी नहीं
ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
कहें किस से हमारा खो गया क्या
इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा
सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या
किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़