अख्तर शुमार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अख्तर शुमार
नाम | अख्तर शुमार |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Shumar |
जन्म की तारीख | 1960 |
वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'
तू ने एक उम्र के बाद पूछा है हाल-ए-दिल
पहाड़ भाँप रहा था मिरे इरादे को
मुद्दतों में आज दिल ने फ़ैसला आख़िर दिया
मेरी रुस्वाई अगर साथ न देती मेरा
मिरी निगाह की वुसअत भी इस में शामिल कर
मैं ज़िंदगी के सफ़र में था मश्ग़ला उस का
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
मैं घर को फूँक रहा था बड़े यक़ीन के साथ
अभी सफ़र में कोई मोड़ ही नहीं आया
अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
ज़रा सी देर थी बस इक दिया जलाना था
या तो सूरज झूट है या फिर ये साया झूट है
वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता
उस की चाह में नाम नहीं आने वाला
उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
तिरे बग़ैर मसाफ़त का ग़म कहाँ कम है
सितारा ले गया है मेरा आसमान से कौन
सारी ख़िल्क़त एक तरफ़ थी और दिवाना एक तरफ़
पड़े थे हम भी जहाँ रौशनी में बिखरे हुए
लरज़ उठा है मिरे दिल में क्यूँ न जाने दिया
ख़्वाहिश-ए-जादा-ए-राहत से निकलता कैसे
हिसार-ए-क़र्या-ए-खूँबार से निकलते हुए
ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे
अभी दिल में गूँजती आहटें मिरे साथ हैं