अपना आप नहीं है सब कुछ अपने आप से निकलो
बदबूएँ फैला देता है पानी का ठहराव
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अपने नाख़ुन अपने चेहरे पर ख़राशें दे गए
शुआएँ ऐसे मिरे जिस्म से गुज़रती गईं
फ़रेब-ए-माह-ओ-अंजुम से निकल जाएँ तो अच्छा है
किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके
ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे
धुँद
ऐ शाएर! तेरा दर्द बड़ा ऐ शाएर! तेरी सोच बड़ी
पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है
ग़ुबार-ए-नूर है या कहकशाँ है या कुछ और
मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
बोसीदा ख़दशात का मलबा दूर कहीं दफ़नाओ