अव्वलीं चाल से आगे नहीं सोचा मैं ने
ज़ीस्त शतरंज की बाज़ी थी सो मैं हार गया
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(877) Peoples Rate This
किसी की आँख का तारा हुआ करते थे हम भी तो
चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी
तुम किसी संग पे अब सर को टिका कर सो जाओ
नींद आती है मगर जाग रहा हूँ सर-ए-ख़्वाब
बर-सर-ए-बाद हुआ अपना ठिकाना सर-ए-राह
सर बचे या न बचे तुर्रा-ए-दस्तार गया
रंग-ए-महफ़िल से फ़ुज़ूँ-तर मिरी हैरानी है