काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
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फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
ताशक़ंद की शाम
कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
एक सवाल
कोई हर गाम पे सौ दाम बिछा जाता है
गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना
अब भी रौशन हैं
रंग पर रंग निखरते ही चले आते हैं
किस क़दर नूर-ए-सहर देख के शरमाते हैं
मौत को जानते हैं अस्ल-ए-हयात-ए-अबदी
मेरे ख़्वाब
तिरे प्यार का नाम