कभी पहलू में समुंदर के तड़प उठती हैं
और कभी रेत के सीने से लिपट जाती हैं
इन को आता नहीं आग़ोश-ए-मोहब्बत में क़रार
मौजें मुँह चूम के साहिल का पलट जाती हैं
Parveen Shakir
Javed Akhtar
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Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और
हम जो महफ़िल में तिरी सीना-फ़िगार आते हैं
क़त्ल-ए-आफ़्ताब
नसीम-ए-सुब्ह-ए-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
तुम्हारा शहर
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
रंग पर रंग निखरते ही चले आते हैं
शुऊर
साल-ए-नौ
एक बात
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है