तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
नशात-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ दिलों पे छा ही गया
कहो हिकायत-ए-गेसू फ़साना-ए-क़द-ए-यार
शिकस्त-ए-दार-ओ-रसन का ज़माना आ ही गया
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सुब्ह हर उजाले पे रात का गुमाँ क्यूँ है
देखो तो तीरा-ओ-तारीक फ़ज़ा का आलम
चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है
मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
उलझे काँटों से कि खेले गुल-ए-तर से पहले
मौत को जानते हैं अस्ल-ए-हयात-ए-अबदी
उठो
शम्अ' का मय का शफ़क़-ज़ार का गुलज़ार का रंग
फाँस की तरह हर इक साँस खटकती है मुझे
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
मेरे ख़्वाब