अल्लामा इक़बाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अल्लामा इक़बाल (page 5)

अल्लामा इक़बाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अल्लामा इक़बाल (page 5)
नामअल्लामा इक़बाल
अंग्रेज़ी नामAllama Iqbal
जन्म की तारीख1877
मौत की तिथि1938
जन्म स्थानLahore

मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने

मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं

मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है

मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा

मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा

महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं

कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे

किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने

ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले

ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ

कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है

कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी

जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में

जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में

जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो

जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही

इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर

इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा

इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में

इल्म में भी सुरूर है लेकिन

हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़

हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

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