अल्लामा इक़बाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अल्लामा इक़बाल (page 9)
नाम | अल्लामा इक़बाल |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Allama Iqbal |
जन्म की तारीख | 1877 |
मौत की तिथि | 1938 |
जन्म स्थान | Lahore |
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
शुऊर ओ होश ओ ख़िरद का मोआमला है अजीब
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
रहा न हल्क़ा-ए-सूफ़ी में सोज़-ए-मुश्ताक़ी
पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी
न आते हमें इस में तकरार क्या थी
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में
मिरी नवा से हुए ज़िंदा आरिफ़ ओ आमी
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे