Ghazals of Allama Iqbal

Ghazals of Allama Iqbal
नामअल्लामा इक़बाल
अंग्रेज़ी नामAllama Iqbal
जन्म की तारीख1877
मौत की तिथि1938
जन्म स्थानLahore

ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी

ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़

यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना

ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी

ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही

ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़

ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब

ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी

तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना

तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं

तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र

था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही

तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

शुऊर ओ होश ओ ख़िरद का मोआमला है अजीब

समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा

सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं

रहा न हल्क़ा-ए-सूफ़ी में सोज़-ए-मुश्ताक़ी

पूछ उस से कि मक़्बूल है फ़ितरत की गवाही

फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन

परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए

निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है

ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी

नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

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