आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(8269) Peoples Rate This
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
एक पहाड़ और गिलहरी
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
हमदर्दी