ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
ख़िरद क्या है? चराग़-ए-रहगुज़र है
दरून-ए-ख़ाना हंगामे हैं क्या क्या
चराग़-ए-रहगुज़र को क्या ख़बर है
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हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया