दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
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ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
यही आदम है सुल्ताँ बहर-ओ-बर का
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़
सबक़ मिला है ये मेराज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे
शिकवा
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
जिब्रईल ओ इबलीस