गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
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तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
ज़ोहद और रिंदी
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
मरक़द का शबिस्ताँ भी उसे रास न आया
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं
न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
मिर्ज़ा 'ग़ालिब'