है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
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हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
तराना-ए-हिन्दी
ख़ुदी बुलंद थी उस ख़ूँ-गिरफ़्ता चीनी की
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
यक़ीं मिस्ल-ए-ख़लील आतिश-नशीनी
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा